हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती
किसी भी सांसारिक उपलब्धी के लिए तो हम दिन रात एक कर देते हैं, हाडतोड़ परिश्रम करते हैं, पर परमात्मा की प्राप्ति को जो उच्चतम उपलब्धी है, हम सिर्फ ऊँची ऊँची बातों के शब्दजाल से ही प्राप्त करना चाहते हैं l वास्तविकता तो यह है की हमने परमात्मा को तो साधन बना रखा है, पर साध्य तो संसार ही है l
परमात्मा को पाने का मार्ग है परमात्मा से अहैतुकी (Unconditional) परम प्रेम l प्रेम में कोई माँग नहीं होती, मात्र शरणागति और समर्पण होता है l प्रेम में गहन अभीप्सा और समर्पण हो तो सब कुछ अपने आप ही मिल जाताहै l अपने प्रेमास्पद का ध्यान निरंतर तेलधारा के सामान होना चाहिए l प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं l
हम भगवान् के प्रति अटूट समर्पण तथा त्यागमय् और मर्यादामय् जीवन जीयें l भगवान् के नाम का स्मरण, भगवान् ने बनायें सभी जीवों की सेवा, प्रभु की भक्ति करते रहैं , जिससे हमारे जीवन में सात्विकता बढेगी और संस्कारों का जीवन में प्रवेश होने लगेगा, और हम किये हुयें पापों से मुक्त हो सकेंगे l हम सब कृष्ण की कृपा पर पूर्णतया आश्रित रहें। हम लोग अपने हृदय में प्रभु प्रेम की ज्योत पूर्ण समर्पण भाव से जगा ले तो प्रभु कृपा की प्राप्ति में लेष मात्र भी संशय नहीं है। हमें तो अधिक से अधिक समय नामजप और ध्यान में बिताना चाहिए l नौकरी में जगत मजदूरी देता है तो भगवान क्यों नहीं देंगे? पर उनसे मजदूरी तो माँगनी ही नहीं चाहिए l माँगना ही है तो सिर्फ उनका प्रेम; प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं l प्रेम को ही मजदूरी मान लीजिये l एक बात का ध्यान रखें ….. मजदूरी उतनी ही मिलेगी जितनी आप मेहनत करोगे l बिना मेहनत के मजदूरी नहीं मिलेगी l इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है, हर चीज की कीमत चुकानी पडती है l