सोने की लंका का असली इतिहास
महादेव ने समझाया कि हम तो ठहरे योगी, महल में तो चैन ही नहीं पड़ेगा। महल में रहने के बड़े नियम-विधान होते हैं। मस्तमौला औघड़ों के लिए महल उचित नहीं है।
परंतु देवी का वह तर्क अपनी जगह पर कायम था कि देव यदि महल में रहते हैं तो महादेव क्यों श्मशान में और बर्फ की चट्टानों पर? महादेव को झुकना पड़ा। उन्होंने उन्होंने विश्वकर्मा जी को बुलाया। उन्हें ऐसा महल बनाने को कहा जिसका सुंदरता की बराबरी का महल त्रिभुवन में कहीं न हो। वह न तो धरती पर हो न ही जल में।
विश्वकर्मा जी जगह की खोज करने लगे। उन्हें एक ऐसी जगह दिखी जो चारों ओर से पानी से ढकी हुई थी बीच में तीन सुन्दर पहाड़ दिख रहे थे। उस पहाड़ पर तरह-तरह के फूल और वनस्पति थे। यह लंका थी। विश्वकर्माजी ने माता पार्वती को उसके बारे में बताया तो माता प्रसन्न हो गईं और एक विशाल नगर के ही निर्माण का आदेश दे दिया। विश्वकर्मा जी ने अपनी कला का परिचय देते वहां सोने की अद्भुत नगरी ही बना दी।
माता ने गृह प्रवेश को मुहूर्त निकलवाया। विश्रवा ऋषि को आचार्य नियुक्त किया गया। सभी देवताओं और ऋषियों को निमंत्रण मिला। जिसने भी महल देखा वह उसकी प्रशंसा करते नहीं थका। गृहप्रवेश के बाद महादेव ने आचार्य से दक्षिणा मांगने को कहा। महादेव की माया से विश्रवा का मन उस नगरी पर ललचा गया था इसलिए उन्होंने महादेव से दक्षिणा के रूप में लंका ही मांग लिया।
महादेव ने विश्रवा को लंकापुरी दान कर दी। पार्वती जी को विश्रवा की इस धृष्टता पर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने क्रोध में आकर शाप दे दिया कि तूने महादेव की सरलता का लाभ उठाकर मेरे प्रिय महल को हड़प लिया है। मेरे मन में क्रोध की अग्नि धधक रही है। महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर कोयला कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा।
कथा श्रुति के अनुसार विश्रवा से वह पुरी पुत्र कुबेर को मिली लेकिन रावण ने कुबेर को निकाल कर लंका को हड़प लिया। शाप के कारण शिव के अवतार हनुमान जी ने लंका जलाई और विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण और कुल का विनाश हुआ। श्रीराम की शरण में होने से विभीषण बच गए।
आज के युग के अनुसार रावण का राज्य विस्तार, इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका पर रावण का राज था। श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है। कमेटी के अनुसार श्रीलंका में रामायण काल से जुड़ी 50 जगहों पर रिसर्च की गई है और इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध की है।