समय-समय पर बरसते बादल, सौंधी-सौंधी सी मिट्टी की खुशबू, धूप और घटाएं चारों तरफ फैली हरियाली प्रकृति की सुन्दरता में चार चांद लगाती है। व्रत, उपासना और प्यार के संग प्रकृति को समझने का नाम है सावन। सावन में प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम सीमा पर पर होता है। सावन में प्रकृति अपना नया श्रृंगार करती है और हमारे शिव तो प्रकृति के ही देवता हैं।
प्रकृति के विराट रूपक। पर्वत शिव का आवास है। वन उनकी क्रीड़ाभूमि। नदी उनकी जटाओं से निकलती है। योग से वे वायु को नियंत्रित करते हैं। उनकी तीसरी आंख में अग्नि का तेज और माथे पर चंद्रमा की शीतलता है। सांप, बैल, मोर, चूहा उनके परिवार के सदस्य हैं। उनके पुत्र गणेश का सर हाथी का है। उनकी पत्नी पार्वती के एक रूप दुर्गा का वाहन सिंह है। उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों - रज, तम और सत का प्रतीक है। उनके डमरू के स्वर में प्रकृति का संगीत है। उनकी पूजा महंगी पूजन सामग्रियों से नहीं, बल्कि प्रकृति में बहुतायत से उपलब्ध बेलपत्र, भांग की पत्तियों, धतूरे और कनैल के फूलों से की जाती है। शिव निश्छल, भोले और कल्याणकारी हैं।
एकदम प्रकृति की तरह। इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में ही मन में उल्लास व उमंग भर देती है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस माह की पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र का योग बनता है। इसलिए श्रवण नक्षत्र के नाम से इस माह का नाम श्रावण हुआ। यह महीना चतुर्मास के चारों महीनों में सबसे अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।
अंधेरे में भी जो देते हैं साथ
वो है मेरे शिव शंभु भोलेनाथ...!!