वेद क्या हैं और क्या हैं इनका अर्थ और महत्व
वेद क्या है इनका सार और क्या लिखा है हमारे वेदो में:
वेद हिन्दू धर्म और मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन लिखित दस्तावेज़ हैं। या फिर यूँ कहिये की हिन्दू धर्म के आदर्श विश्व के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं ये वेद ही हैं जिनके आधार पर धार्मिक मान्यताओं और विचारधाराओं का आरंभ और विकास हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार वेदों को ईश्वर की वाणी भी समझा जाता है। वेद में जो मंत्र लिखित है इन्हे ऋचाएँ कहा जाता है, और इनका उपयोग आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके लिखे जाने के समय था।
वेद शब्द का अर्थ और उत्पति :
वेद शब्द की उत्पत्ति वास्तव में संस्कृत भाषा के शब्द ”विद” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है जानना या ज्ञान का जानना। दूसरा वेदों का इतिहास का धागा एक अनंत दिशा की ओर ले जाता है फिर भी कुछ इतिहासकारों के अनुसार 1500-1000 ई. पू. के आसपास के समय में वेदों की रचना की गयी होगी।वेदो की 28000 पांडुलिपियां भारत के पुणे में भंडार कर ओरिएंटल रिसर्च सेण्टर में राखी हुयी है युनेस्को ने भी 1800 से 1500 ई.पू. में रची ऋग्वेद की 30 पाण्डुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहर की श्रेणी में रखा है।
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में इस बात का प्रमाण मिलता है की वेदों की रचनाकार स्वयं भगवान ब्रह्मा हैं और उन्होंने इन वेदों के ज्ञान तपस्या में लीन अंगिरा, आदित्य, अग्नि और वायु ऋषियों को दिया था। इसके बाद पीड़ी दर पीड़ी वेदों का ज्ञान चलता रहा।
वेदों की संख्या:
जैसा की हम सभीजानते हैं की वेदों की संख्या चार है, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की शुरुआत में वेद केवल एक ही था इसके तीन विभाग थे ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद अध्ययन की सुविधा की द्रष्टि से उसे चार भागों में बाँट दिया गया। एक और मत इस संबंध में प्रचलित है जिसके अनुसार, अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या करी और ऋग्वेद, यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया।
1 ऋग्वेद
2 यजुर्वेद
3 सामवेद
4 अथर्ववेद