किष्किंधा
तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे किष्किन्धा जो कि आज हम्पी है, वाल्मीकि रामायण में पहले वालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है।
आज के संदर्भ में यह राज्य तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के इलाके में माना गया है। रामायण के काल में विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था। अतः यहाँ के निवासियों को वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग। रामायण में किष्किन्धा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गयी है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।
किष्किंधा नगर वानरों का साम्राज्य था जिस पर सुग्रीव के भाई बाली का राज था। श्रीराम ने बाली को मार कर सु्ग्रीव को राजा बनाया। हनुमानजी और श्रीराम की पहली मुलाकात भी इसी नगर के पास जंगलों में हुई थी। इस क्षेत्र में आज भी उस काल की यादों बसी हुई हैं। यह नगर पर्यटन का प्रमुख केंद्र भी है।उस काल का किष्किंधा नगर आज भी कर्नाटक राज्य में है। राज्य के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी में रामायण काल के प्रसिद्ध किष्किंधा क्षेत्र के अस्तित्व के अवशेष आज भी पाए जाते हैं।
ऋष्यमूक पर्वत
हम बात कर रहे हैं रामायण काल के एक प्रसिद्ध पर्वत की। बता दें कि इस पर्वत का रामायण में कई बार जिक्र किया गया है। इसका नाम ऋष्यमूक पर्वत है। कहे हैं कि पर्वत के इस नाम से संबंधित एख रोचन कथा का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब रावण का अत्याचार बहुत बढ़ गया था बहुत से ऋषि उससे डरकर एक साथ एक पर्वत पर जाकर रहने लगे। कहते हैं ये भी ऋषि यहां मौन होकर रावण का विरोध कर रहे थे। बता दें कि रामायण में किष्किंधा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गई है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। जब रावण विश्व विजय प्राप्त करने के लिए इस पर्वत के समीप से गुज़रा तो उसने बहुत से ऋषियों को एक साथ देखा तो उसने उनके इक्टठे होने का कारण पूछा तो राक्षसों ने उसे बताया महाराज आपके द्वारा सताए हुए ऋषि मूक यानि मौन होकर यहां आपका विरोध कर रहे हैं।
ये सुनकर रावण को क्रोध आ गया और उसने एक-एक करके सारे ऋषियों को मार डाला। कहा जाता है कि उन्हीं के अस्थि अवशेषों से यहां पहाड़ बन गया, तभी से इस पर्वत को ऋष्यमूक पर्वत के नाम से जाना जाने लगा। बता दें पौराणिक ग्रंथों में इससे जुड़ी एक जानकारी मिलती है। रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत में ऋषि मतंग का आश्रम था। बालि ने दुंदुभि असुर का वध करके दोनों हाथों से उनका मृत शरीर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए मृत दुंदुभि के मुंह से रक्तस्राव हो रहा था जिसकी कुछ बूंदें मतंग ऋषि के आश्रम पर भी पड़ गई थी। मतंग यह जानने के लिए कि यह किस ने किया है, अपने आश्रम से बाहर निकले। उन्होंने अपने दिव्य तप से सारा हाल जान लिया और जब उन्हें पता चला कि ये बालि ने किया है तो उन्होंने उसे शाप दे डाला कि अगर वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन के पास भी आएगा तो अपने प्राणों खो बैठेगा। कहते हैं इस बात के बारे में बालि के छोटे भाई सुग्रीव को पता था। इसी कारण से जब बालि ने सुग्रीव को देश-निकाला दिया तो उसने बालि से बचने के लिए अपने अनुयायियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत में जाकर शरण ली।
सुग्रीव गुफा
सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं।
रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है।
क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।
बाली की गुफा
बाली जिस गुफा में रहता था, वह गुफा भी आकर्षण का केंद्र है। यह अंधेरी, लेकिन काफी लंबी-चौड़ी गुफा है। जहां एक साथ कई अंदर जा सकते हैं। इसी गुफा से ललकार कर राम ने बाली को निकाला। जब उनके हाथों बाली की मृत्यु हो गई तो सुग्रीव को राजपाट सौंपा गया यानी यहां रामायण में उल्लेख हुई ढेरों बातें देखने को मिल जाएंगी। इससे पहले सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था, जो आज भी यहां मौजूद है। वहां वह बाली से इसलिए सुरक्षित था, क्योंकि बाली को एक ऋषि ने शाप दिया था कि वह अगर ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ेगा तो मारा जाएगा। इसी पर्वत पर हनुमान ने राम और सुग्रीव की दोस्ती कराई थी।
त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग
भगवान राम के युग यानी त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग होता था, जो विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था। भगवान श्रीराम को जब वनवास मिला तो लक्ष्मण और सीता के साथ उन्होंने इसी दण्डक वन में प्रवेश किया। यहां से रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था। श्रीराम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आए। चूंकि राम यहां कई स्थानों पर रहे, लिहाजा यहां उनके कई मंदिर और स्मृति चिन्ह हैं। लगता है कि प्राचीन समय में किष्किंधा काफी ऐश्वर्यशाली नगरी थी, बाल्मीकि रामायण में इसका विस्तार से उल्लेख है। अंश इस प्रकार है- लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और अलौकिक दीख पड़ती थी। उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे। हर्म्य प्रासादों से सघन, विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी संपन्न थी। दिव्यमाला और वस्त्र धारण करने वाले सुंदर देवताओं, गंधर्व पुत्रों और इच्छानुसार रूप धारण करने वाले वानरों से वह नगरी बड़ी भली दीख पड़ती थी। चंदन, अगरु और कमल की गंध से वह गुहा सुवासित थी। मैरेय और मधु से वहां की चौड़ी सड़कें सुगंधित थीं। इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि किष्किंधा पर्वत की एक विशाल गुहा के भीतर बसी हुई थी। इस नगरी में सुरक्षार्थ यंत्र आदि भी लगे थे।
कर्नाटक का बेल्लारी जिला और यहां का एक छोटा-सा शहर 'हम्पी' कभी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। हम्पी तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है। यह नगर प्राचीन काल में 'पंपा' के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि पंपा में ही भगवान श्रीराम जी की पहली भेंट भगवान श्री हनुमानजी से हुई थी।
कैसे हुई भेंट
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब रावण, महाराष्ट्र में नासिक के पास, पंचवटी से माता सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। तब सीता कहां गईं श्रीराम और लक्ष्मण को पता नहीं था। वह जंगल-जंगल भटके, लेकिन माता सीता का कुछ भी पता नहीं चल पाया। उस समय सीता की खोज करते हुए दोनों भाई किष्किंधा पहुंचे। इस क्षेत्र में ही अंजनी पर्वत पर बजरंगबली के पिता महाराज केसरी का राज था, जहां बजरंगबली रहते थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव के मित्र, बजरंगबली थे जब उन्हें पता चला कि दो राजकुमार उनके क्षेत्र में आए हैं। तब वह ब्रह्मण रूप में उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने विनम्रता से कहा, 'सांवले शरीर वाले आप कौन हैं, क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं?'
हंपी ही है पंपा
इस पर श्री रामचंद्रजी ने कहा, 'हम अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र हैं और पिता का वचन पूरा करने वनवास पर निकले हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी। यहां वन में राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया।' 'हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! आप अपनी बारे में सुनाइए, आप कौन हैं?' प्रभु को पहचानकर हनुमानजी उनके चरण पकड़कर पृथ्वी पर नतमस्तक हो गए। उन्होंने साष्टांग दंडवत प्रणाम कर स्तुति की। अपने आराध्य को समाने देख वो हर्ष से सराबोर थे। जहां हनुमानजी की भेंट भगवान श्रीराम से हुई यह ओर कोई नहीं हंपी ही थी जिसे प्राचीन काल में पंपा कहते थे।
अंजनी पर्वत
अंजनी पर्वत एक ऊंचा पहाड़ है. यही हनुमान जी की जन्मस्थली है. पहाड़ के ऊपर हनुमान जी का एक मंदिर है, जहां अखंड पूजा चलती रहती है. लगातार हनुमान चालीसा पढ़ी जाती रहती है. ये मत सोचिए कि इस मंदिर तक पहुंचना आसान है. शायद ये मुश्किल ही इस मंदिर में आकर हनुमान जी के दर्शनों को और खास भी बनाती है
500 से ज्यादा सीढ़ियां
इसके लिए 500 से अधिक सीढियां चढनी होती हैं। ये आसान तो कतई नहीं. सीढियां चढने के दौरान आप पाते हैं कि कई जगहों पर ये सीढियां पहाड़ियों को काटकर बनाई गई हैं तो कई जगह ये पहाड़ की गुफाओं के बीच से गुजरती हैं. सीढियों के साथ ऊपर चढ़ने के दौरान कई बार ऐसी चट्टानें भी मिलती हैं कि उनके बीच से प्रकृति की खूबसूरती का कैनवस दिखता है. ऊपर पहुंचने पर हनुमान मंदिर में दर्शन के दौरान आप एक अलग आनंद से भर उठेंगे।