मिंजर मेला: हिमाचल प्रदेश में कृषि और संस्कृति का उत्सव
मिंजर चंबा का सबसे लोकप्रिय मेला है जिसमें देश भर से बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को आयोजित होता है। मेले की घोषणा मिंजर के वितरण से की जाती है यह मेला अंतराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता हैl इस मेले में न केवल हिमाचल के लोग बल्कि दुसरे राज्यों के लोग भी शामिल होते हैl यह मेला चम्बा के ऐतिहासिक चौगान मैदान में आयोजित किया जाता हैl इस मेले को चौगान मैदान में मिंजर ध्वज लहराने के साथ शुरू किया जाता है जो एक सप्ताह तक चलता हैl इस मेले में रात्री कार्यक्रम, खेल-कूद प्रतियोगिता और झांकियां जैसे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैl
इतिहास
मिजर शब्द का अर्थ है मक्की व् धान की खेती में फसल लगने से पहले लगने वाले फूलों को मिंजर कहते हैl कहा जाता है कि मिंजर मेले की शुरुआत 935 ई. में हुई थी जब चम्बा के राजा, त्रिगर्त (कांगड़ा) के राजा पर विजय प्राप्त कर के अपने राज्य लौटे थेl उस समय चम्बा के स्थानीय लोगों ने अपने राजा के विजयी होकर लौटने की खुशी में उन्हें मिंजर व् मौसमी फल भेंट किये थेl उस समय से मिंजर मेले की शुरुआत हुईl चम्बा शहर की स्थापना 920 ई. में राजा साहिल बर्मन ने की थीl
मिंजर मेला एक सदियों पुराना त्योहार है जो 10वीं शताब्दी से हिमाचल प्रदेश की चंबा घाटी में मनाया जाता है। यह लोगों के लिए एक साथ आकर फसल का जश्न मनाने, देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने और पारंपरिक संगीत, नृत्य और भोजन का आनंद लेने का समय है।
मेला श्रावण माह के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई या अगस्त में होता है। "मिंजर" नाम रेशम के लटकन को संदर्भित करता है जो मेले के दौरान लोगों द्वारा पहने जाते हैं। ये लटकन धान और मक्के के अंकुरों का प्रतीक हैं, जो चंबा घाटी में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं।
मेले की शुरुआत चंबा शहर के ऐतिहासिक चौगान मैदान में मिंजर ध्वज फहराने के साथ होती है। इसके बाद एक सप्ताह तक उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पारंपरिक संगीत और नृत्य प्रदर्शन, लोक गीत, खेल प्रतियोगिताएं और देवताओं का एक रंगीन जुलूस शामिल होता है।
मिंजर मेले का एक मुख्य आकर्षण मिंजर जुलूस है। इस जुलूस का नेतृत्व मिंजर ध्वज ले जाने वाले पुजारियों के एक समूह द्वारा किया जाता है। उनके पीछे लोगों की एक बड़ी भीड़ होती है, जो चंबा की सड़कों से गुजरते हुए नाचते और गाते हैं।
मिंजर जुलूस मिंजर मंदिर में समाप्त होता है, जहां देवताओं की पूजा की जाती है। पूजा के बाद पुजारी लोगों को मिंजर लटकन बांटते हैं। माना जाता है कि ये लटकन सौभाग्य और समृद्धि लाते हैं।
मिंजर मेला लोगों को अपनी संस्कृति और विरासत का जश्न मनाने के लिए एक साथ आने का समय है। यह परिवारों के इकट्ठा होने और दोस्तों से मिलने का समय है। यह पारंपरिक भोजन और संगीत का आनंद लेने और पारंपरिक गतिविधियों में भाग लेने का समय है।
मिंजर मेला एक अनोखा और विशेष आयोजन है जिसे छोड़ना नहीं चाहिए। यदि आप श्रावण माह के दौरान कभी चंबा घाटी में हों, तो मिंजर मेले में शामिल होने के लिए समय अवश्य निकालें।