नास्तिकता इंसान को कमजोर बनाती है । थोड़े से दुख आते ही इंसान टूट जाता है और वह खुदकुशी जैसे कदम उठा लेता है लेकिन जो आस्तिक मनुष्य होता है वह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी डटा रहता है और उस कष्ट को उस तकलीफ को ईश्वर की इच्छा समझ कर अपना प्रारब्ध समझ कर सहजता से भोगता रहता है, अपने बुरे समय को वह भगवान के सहारे गुजार लेता है ।
हमें अपने बच्चों को भगवत भक्ति के संस्कारों से जोड़े रखना चाहिए । माना कि आज का युग विज्ञान का युग है, अंग्रेजी शिक्षा का युग है परंतु फिर भी बच्चों की आत्मिक उन्नति के लिए उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा भी देना जरूरी है । आप जब भी मंदिर जाए तो अपने बच्चो को भी लेकर जाए और उन्हें ईश्वर की महिमा से अवगत कराए ।
अगर आपका बच्चा नास्तिक है तो जरूरी नहीं वह बुढ़ापे में आपकी सेवा करे ही, परंतु यदि आपने उसे भक्ति संस्कार देकर आस्तिक बनाया है तो वह बुढ़ापे में आपकी सेवा अवश्य करेगा । अपने धर्म और अपने कर्म को बचाने के लिए अपने बच्चों को नास्तिक बनने से रोके और उनके मन में आने वाली शंकाओं और संदेह को अपने ज्ञान से अपने अनुभव से नष्ट करें ताकि वह नास्तिक होने से बच जाए । आप भी श्रीमद भगवद्गीता जी का नित्य निरंतर अध्यन करते रहे जिस से आप उनकी शंकाओं का समाधान कर सके । श्री गीता जी का आप जितनी बार अध्ययन करेंगे उतनी ही बार आपको कुछ नया अवश्य मिलेगा , अतः श्री गीता जी के अध्ययन के नियम को अपने जीवन में उतार ले।
हर हर महादेव