Login |   Get your FREE Account
  Free Listing
 नाग पंचमी

हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है. खुद भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर सोते हैं और ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव अपने गले में सांप का हार पहनते हैं.

हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को ‘नागपंचमी’ का पर्व परंपरागत रूप से पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस साल नाग पंचमी 13 अगस्त को मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में नाग पंचमी पर्व का बहुत ही खास महत्व है. यह नागों की पूजा का पर्व है. इस दिन हिंदू धर्म के लोग पूरे विधि-विधान से सांपों की पूजा की जाती है. मनुष्य और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं से झलकता रहा है. हिंदू धर्मग्रन्थों में नाग को देवता माना गया है और इनका विभिन्न जगहों पर उल्लेख भी किया गया है. हिन्दू धर्म में कालिया नाग, शेषनाग, कद्रू (सांपों की माता), तक्षक आदि बहुत प्रसिद्ध हैं.

कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा कश्यप ऋषि (जिनके नाम से कश्यप गोत्र चला) की पत्नी ‘कद्रू’ नाग माता के रूप में आदरणीय रही हैं. कद्रू को सुरसा के नाम से भी जाना जाता है.

नाग पंचमी पर्व का पौराणिक महत्व

मान्यताओं के मुताबिक हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है. खुद भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर सोते हैं और ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव अपने गले में सांप का हार पहनते हैं. भगवान कृष्ण के जन्म के बाद वासुदेवजी ने नाग की सहायता से ही यमुना पार की थी. यहां तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद भी वासुकी नाग ने ही की थी. इसलिए हिंदू धर्म में नाग देवता का खास महत्व है और नाग पंचमी के दिन सनातम धर्म को मानने वाले समस्त नागों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं.

वर्षा ऋतु में वर्षा का जल धीरे-धीरे धरती में समाकर सांपों के बिलों में भर जाता है. इसलिए श्रावण मास में सांप सुरक्षित स्थान की खोज में अपने बिल से बाहर निकलते हैं. संभवतः उस समय उनकी रक्षा करने और सर्पभय व सर्पविष से मुक्ति पाने के लिए भारतीय संस्कृति में इस दिन नाग के पूजन की परंपरा शुरू हुई. पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषेध है. नागपूजन करते समय इन 12 प्रसिद्ध नागों के नाम लिये जाते हैं- धृतराष्ट्र, कर्कोटक, अश्वतर, शंखपाल, पद्म, कम्बल, अनंत, शेष, वासुकी, पिंगल, तक्षक और कालिया. इसके साथ ही इन सभी नागों से अपने परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है.

नाग पंचमी के दिन की जाती है मनसा देवी की पूजा

उत्तर भारत में नागपंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा करने का विधान भी है. मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री और नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है. देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है. इसलिए बंगाल, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में नागपंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा-अर्चना की जाती है.

नागपूजा या सर्पपूजा किसी न किसी रूप में विश्व में सभी जगह की जाती है. दक्षिण अफ्रीका में कई जातियों में नागों को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है. ऐसा माना जाता है कि कुल की रक्षा का भार सर्पदेव पर ही है. कई जातियों ने नाग को अपने धर्मचिह्न के रूप में स्वीकार किया है. ऐसी भी मान्यता है कि पूर्वज सर्प के रूप में अवतरित होते हैं.

शिव की आराधना भी नागपंचमी के पूजन से जुड़ी है. पशुओं के पालनहार होने की वजह से शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में भी की जाती है. शिव की आराधना करने वालों को पशुओं के साथ सहृदयता का बर्ताव करना जरूरी है.

नागपंचमी के दिन क्या करें

नागपंचमी के दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए. बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करनी चाहिए. नागदेव को दूध से नहलाना चाहिए. नागदेव की सुगंधित पुष्प और चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है.

ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्प दोष दूर होता है

नाग पंचमी पूजा विधि

सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करके नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं. तपश्चात स्नान कर साफ एवं स्वच्छ कपड़े धारण करें. नाग पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएं. कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी (ठंडा) खाना खाया जाता है. इसके बाद दीवार पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है. फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवार पर घर का चित्र बनाया जाता है और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति भी बनाई जाती है.

कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे की दोनों ओर पांच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजे जाते हैं. सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध व लाई चढ़ाया जाता है. फिर दीवार पर बनाए गए नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाया जाता है. इसके बाद आरती करके कथा का श्रवण किया जाता है.

Recently Posted

Our Business Associates


Our NEWS/Media Associate


Get your Account / Listing


Here we come up with a choice for you to choose between these two type of accounts : Personal(non business) Account and Business Account. Each account has its own features, read and compare for better understanding. This will help you in choosing what kind of account you need to register with us.


Personal / Non Business Account

In this account type you can do any thing as individual
like wall post, reviews business etc...

Join

Commercial / Business Account

In this account type you can promote your business with all posibilies
and wall post, reviews other business etc...

Join