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चाँद बावड़ी  एवं हर्षद माता मंदिर आभानेरी राजस्थान

राजस्थान के दौसा जिले के एक छोटे से कस्बे में स्थित है विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी जो लगभग 1300 साल पुरानी है ये 8 9वी सदी की बेजोड कलाकृति हैं, ये वो कलाकृति हैं जो लगभग 200 साल तक अखण्ड रही औऱ अपनी चन्द्र छटा बिखेरती रही। उज़के बाद हुए आक्रमण ने इसकी हालात तो बिगाड़ी लेकिन अभी भी इसका सौंदर्य देखते बनता हैं।
राजस्थान या रेगिस्तान एक भ्रम

राजस्थान या रेगिस्तान : एक भ्रामक तथ्य :- 

" राजस्थान " ये नाम सुनते ही जो राजस्थान के निवासी नही है या जिनको कभी राजस्थान जाने का मौका नही मिला उनके जेहन में सिर्फ एक ही बात सामने आती है। राजस्थान मतलब रेगिस्तान यानी यहाँ पर चारो और सिर्फ रेत ही रेत होगी और पीने के लिये पानी को लोग तरसते होंगे। क्यों यही सोचते हो ना राजस्थान के बारे में 😂😂😂😂

 खैर तुम्हारा सोचना जायज भी है क्योंकि पूर्वकाल से हमे किताबो के जरिये यही बताया और सिखाया जाता रहा है कि राजस्थान रेगिस्तान का दूसरा नाम है । लेकिन आपकी जानकारी के लिये बता दु की आपकी सोच यहा पर गलत है। क्योंकि  राजस्थान का मतलब रेगिस्तान से नही राजाओं के स्थान से है, और रही बात रेगिस्तान की तो भारतीय उपमहाद्वीप का एक मात्र शुष्क रेगिस्तान राजस्थान  में ही पाया जाता है जिसका कुछ हिस्सा पंजाब, गुजरात और पाकिस्तान में भी स्थित है , लेकिन ये रेगिस्तान सम्पूर्ण राजस्थान में नही है केवल पश्चिमी औऱ उत्तरी राजस्थान के साथ साथ मध्य राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी है, मुख्यतः यह जैसलमेर , बाड़मेर , जोधपुर, बीकानेर, में स्थित है। 

राजस्थान भारत का क्षेत्रफल की द्रष्टि से सबसे बड़ा राज्य है  । और ये एक मात्र राज्य है जहाँ सभी तरीके की भौगोलिक स्थिति पाई जाती है। राजस्थान में जहाँ एक औऱ गर्म रेत का रेगिस्तान है तो दूसरी और हाड़ौती का पठार है , पूर्व का मैदानी भाग, दक्षिणी राजस्थान में सघन वन है तो सिरोही के माउंट आबू पर सर्दियों में बर्फबारी भी होती है। माउंट आबू राजस्थान का एक मात्र हिल स्टेशन है। जहाँ हमेशा मौसम पूरे राजस्थान की अपेक्षा ठंडा रहता है, जहा जून के महीने म भी दिन औऱ रात के समय कोहरा छाया रहता है, तो हम कह सकते है कि राजस्थान में रख समय मे बहुत तरीके का मौसम देखने को मिल जाता है।

पूर्वकाल में राजस्थान का उत्तरी हिस्सा पानी की मार से से त्रस्त था ले भारत सरकार की इंदिरागांधी नहर परियोजना ने उत्तरी राजस्थान को एक नई जिंदगी दी औऱ आज यहाँ पानी की कोई भी समस्या नही है। जहा तक रेगिस्तानी क्षेत्र की बात करे अभी भी कुछ क्षेत्रों में पानी की समस्या है लेकिन अब पहले जैसे हालात नही है। लेकिन पहले से बुरे हालात अब मैदानी क्षेत्र अर्थात पूर्वी राजस्थान में होते जा रहे हैं किसी वक़्त पानी से भरपूर ये क्षेत्र जल के अनुवांछित दोहन की वजह से जल संकट से त्रस्त होता जा रहा हैं। 


राजस्थान के जल स्रोत्र

राजस्थान के जल स्रोत :- 

प्राचीन काल मे राजस्थान में जल के स्रोत मुख्यतः नदी तालाब , नहर, कुओं और बावड़ीयो से हुआ करता था । जिनमें बावडिया पेयजल का मुख्य स्रोत हुआ करती थी , जिनका निर्माण उस वक़्त या तो राजाओं द्वारा किया जाता था ताकि उनके राज्य में जल संकट से बचा जा सके। 

बावड़ियों के जल का स्रोत भूमिगत जल ही हुआ करता था ,क्योंकि बावड़ियों के गर्भ में एक कुआ खोदा जाता था औरउसके चारो तरफ सीढ़ी नुमा पत्थर बिछा दिए जाते थे जिससे आसानी से उनमे उतरा जा सकता था।

 राजस्थान के हर राज्य और गांव में लगभग बावडिया मिल जाएगी जो आकर में छोटी या बड़ी हो सकती है मगर उनका मुख्य कार्य पेयजल की आपूर्ति का ही होता था। वो सभी बावडिया या तो देखरेख के अभाव में खंडहर बन चुकी है या विलुप्ति की कगार पर है लेकिन कुछ एक बावडिया हैं जो आज भी उसी शान से खड़ी हुई हैं , जैसी उस जमाने मे हुआ करती थी।



चाँद बावड़ी आभानेरी

चाँद बावड़ी आभानेरी :- 


       " The largest stepwell of World :- Chand Bawari " राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र ढूंडाण के बांदीकुई कस्बे से 15 किलोमीटर की दूरी पर  ये बावड़ी आभानेरी नामक गाव में स्थित है। इस बावड़ी  का निर्माण नुकम्भ वंश के शासक राजा चांद ने 8वी - 9वी शताब्दी के मध्य में करवाया था ,उनके नाम के आधार पर ही इस बावड़ी का नाम चाँद बावड़ी अर्थात राजा चांद की बावड़ी पड़ा। निकुम्भ वंश का शासन उस वक़्त की आभा नगरी अर्थात आभानेरी पर था। उसके बाद इस पर गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक " राजा मिहिर भोज " का शासन रहा ऐसा भी माना जाता है कि मिहिर भोज ही राजा चांद थे और उन्होंने ही इस बावड़ी का निर्माण करवाया था। खैर मान्यता जो भी हो लेकिन ये तो तय है कि इस अद्भुत बावड़ी का निर्माण  गुर्जर प्रतिहारों के काल 9वी शताब्दी में ही हुआ था 


चाँद बावड़ी की स्थापत्यकला

चाँद बावड़ी की स्थापत्यकला :-


चाँदबावड़ी प्रतिहार काल की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है । इसका निर्माण ग्रीष्मकाल में राज निवास के उपयोग हेतु किया गया था।  एक वर्गाकार संरचना में व्यवस्थित ये बावड़ी कुल 19.5 मीटर गहरी है और 35 मीटर चौड़ी है इस बावड़ी की तह तक जाने के लिये 13 सोपान है अर्थात यह 13 मंजिला संरचना है इसमें त्रिकोणाकार में कुल 3500 सीढियां है । जिसके लिये मान्यता है कि एक बार जो इंसान जिस सीढ़ि से नीचे गया है वो वापस आते वक्त उन्ही सीढ़ियों से वापस नही आ सकता है क्योंकि उसकी संरचना ही इस प्रकार है कि आप भूल जाओगे की आपको किधर से आये थे। इस बात की पुष्टि करने के य एक बार फ़िल्म स्टार गोविंदा यहा अपनी फ़िल्म की शूटिंग के लिये आये थे औऱ उन्होंने  ऐसा करने की कोशिस की किंतु नही कर पाए। इस वावड़ी के अंदर भूलभुलैया का निर्माण भी किया है जो अंदर बनी हुई है जिसमे जो भी गया आज तक वापस नही आ सका।


मान्यताओं के अनुसार इस बावड़ी के अंदर 17km लम्बी एक सुरंग है जो दूसरी और स्थित भण्डारेज कस्बे की बावड़ी में जाकर के खुलती है। चाँद बावड़ी की एक औऱ पहचान यहा पर पत्थर पर की गई बेजोड़ नक्काशी से है जिसके द्वारा यहा पर पत्थरो पर 33करोड़ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई गई है तथा काम सूत्रों के हिसाब से भी यहा पर मूर्तियों की नक्काशी की गई है जो 9 वी सदी के बेजोड़ स्थापत्य को दर्शाती है। स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं। इस बावड़ी के चारो तरफ छोटे छोटे बहुत सारे कमरे बनाये गए है जो एक कतार में स्थित है औऱ वो सभी एक सयुंक्त बरामदे से जुड़े हुए है। जो इस संरचना को चारों तरफ से बन्द रखती है औऱ इसे एक महल के भांति प्रतीत करवाती है। इस बावड़ी के मुख्य भवन में राजा के बैठने के लिये और विश्राम के लिये कमरे वनवाये गए है।

इस बावड़ी के उन कमरों में में वर्तमान में मंदिर और बावड़ी की विदेशी अकांताओ द्वारा छिन्न भिन्न की हुई मूर्तियों के अवशेष पड़े हुए हैं जो भारतीय पुरातात्विक विभाग के संरक्षण में है।


हर्षद माता का मंदिर

हर्षद माता का मंदिर :- 


   चांद बावड़ी जितनी पुरानी और इतिहासिक हैं हर्षद माता का मंदिर भी उतना ही पुराना है , ये मंदिर इस गाँव की कुल देवी का मंदिर भी है । ये मंदिर हिन्दू देवी हर्षत माता को समर्पित है, जो हर्ष और उल्लास की देवी हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी सदैव खुश रहती हैं और सब पर अपनी कृपा बरसाती हैं। यहाँ हर्षत माता देवी को सम्मान देते हुए हर वर्ष एक तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु और आसपास के ज़िलों के व्यापारी एकत्र होते हैं। ये मंदिर जो अपनी पत्थर की वास्तुकला के लिए जाना जाता है, अब 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के नियंत्रण में है।   इस विशाल मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने आठवीं-नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तत्कालीन आभानेरी के शासक थे। उस समय आभानेरी आभा नगरी' के नाम से जानी जाती थी।


हर्षत माता का अर्थ है "हर्ष देने वाली"। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजते थे। अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रियासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा माँ की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात 'हर्ष की दात्री' के नाम से भी जाना जाने लगा। 


चांद बावड़ी पर विदेशी आक्रमण

चांद बावड़ी पर विदेशी आक्रमण :- 


      लूटपाट की द्रष्टि से यदि विदेशी आक्रमणों को देखा जाए तो गिने चुने नाम ही सामने आते हैं उनमें हैं महमूद गजनी, अलाउद्दीन खिलजी , नादिर शाह,और अहमदशाह अब्दाली, इन्ही शासको ने भारत पर आक्रमण सिर्फ लूट के उद्देश्य से किया था इनका राज्य विस्तार से कोई मतलब नहीं था। महमूद गजनी ने जितने भी आक्रमण करे उनमें उसका मुख्य टारगेट हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर और उस वक्त के बेजोड़ नमूनों को ध्वस्त करना होता था इसी क्रम में उसने आभानेरी की इस महान बावड़ी और साथ स्थित हर्षद माता के मन्दिर पर आक्रमण किया क्युकी ये उस वक़्त के सबसे समृद्ध स्थानों में से थे यहां की बेजोड़ कलाकृतियों की धाक देखते ही बनती थी , उन्हीं सब को ध्वस्त करने के लिए गौरी ने आक्रमण किया और सब कुछ तहस नहस कर दिया सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया और आसपास के क्षेत्रों में फैला दिया गया । हर्षद माता के मंदिर को भी बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था जिसे वर्तमान स्वरूप में भारतीय पुरातत्व विभाग वालो ने काफी कोशिश के बाद लाया लेकिन वो आभा उस मंदिर की वापस न आ सकी को इसकी अपने काल में थी।


आभानेरी फेस्टिवल

आभानेरी फेस्टिवल :-  

आभानेरी को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में शामिल कर लिया गया है

राजस्थान पर्यटन मंत्रालय द्वारा हर वर्ष आभानेरी में आभानेरी फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसे देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक आते हैं ये उत्सव तीन दिन तक चलता है जिसमें राजस्थानी संस्कृति के अमिट छवि को प्रदर्शित किया जाता है।


आभानेरी और विश्व सिनेमा

आभानेरी और विश्व सिनेमा :- 

   आभानेरी की आभा न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में इस प्रकार फैली हुई है कि हर वर्ष लाखों पर्यटक इस छोटे से गांव को ढूंढते हुए आते है क्युकी इस छोटे से गांव में ही विश्व की सबसे बड़ी स्टेपवैल चांद बावड़ी स्थित है जिसकी आभा हर किसी की आंखों को चुंधिया सकती है।  

    आभानेरी की इस बावड़ी की ख्याति भारतीय सिनेमा ही नहीं अपितु विश्व सिनेमा के मन को भी लुभा चुकी है इसलिए यहां पर बॉलीवुड ही नही हॉलीवुड की भी काफी फिल्मों के सीन शूट किए जा चुके हैं।

   उनमे से  " the Dark night Rise " और "The Fall" जैसी हॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग यहा की गई बॉलीवुड में , भूलभुलैया, भूमि , धड़क,  और भी बहुत सारी फिल्मों के दृश्य और गांनो का फिल्मांकन इसी चांद बावड़ी में किया गया था।


   






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