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गागरौन फोर्ट  -  एक अनभिज्ञ दास्ताँगागरौन फोर्ट  -  एक अनभिज्ञ दास्ताँ (part 1)

एक ऐसा अनूठा विश्व धरोहर जिसे जीतना दुश्मनो के लिए आसान नहीं रहा

भारत के विश्व धरोहर:

यू तो भारत  मे काफी किले, महल, और आरामहगाह, बनाये हुए है जो उस समय के राजाओं, सुल्तानों, और शासकों द्वारा स्व:रक्षा , विलासिता, और सभी प्रकार के दृष्टिकोणों को मद्देनजर रखते हुए  उनका निर्माण किया गया, फिर चाहे वो एशिया का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट चित्तौड़गढ़ हो, या एक मात्र मिट्टी से बना हुआ किला लोहागढ़ या फिर ब्रिटिशों द्वारा बनाया गया फोर्ट विलियम्स, सबका अलग अलग इतिहास रहा है, और सबको बनाने का एक ही मकसद रहा है उस क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिये एक सुदृढ़ निवास स्थान ।

राजस्थान - The Land Of Glorious History and Beautiful fort's:

 जहाँ तक किलो और महलों की बात आती है हमारे दिमाग मे एक ही नाम सामने आता है  " राजस्थान - The Land Of Glorious History and Beautiful fort's " 

क्योंकि शायद ही राजस्थान के बराबर फोर्ट किसी भी राज्य में होंगे । यहाँ के फोर्ट का विश्व भर में प्रसिद्ध होने का कारण यहा की भौगोलिक स्थितियों के हिसाब से बने हुए फोर्ट है उनमें भयंकर रेगिस्तान में स्थित सोनारगढ़ - जैसलमेर या फिर विकट पहाड़ियों में स्थित जंगल मे घात लगाए बाघ की भांति प्रतीत होने वाला - जयगढ़ फोर्ट जयपुर, या बाज की आंख कहे जाने वाले कटारगढ़ फोर्ट ( कुंभलगढ़) या फिर अरावली पर्वतमाला पर स्थित पहाड़ को काटकर उसके अंदर ही बनाया गया अचलगढ़ फोर्ट जो राजस्थान की चौथी सबसे ऊंची पर्वत चोटी भी है। ये सभी राजस्थान के दुर्ग स्थापत्य कला के बहुत ही उत्क्रष्ट नमूने है ।

   मुख्यतः भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर 3 तरह के दुर्ग ( फोर्ट ) पाये जाते है , जो निम्न है

जल दुर्ग , थल दुर्ग और गिरी दुर्ग  राजस्थान में ज्यादातर गिरी दुर्ग ही है लेकिन यहाँ पर थल दुर्गों में लोहागढ़ ( भरतपुर ), भटनेर फोर्ट ( हनुमानगढ़ )

औऱ जल दुर्गों में गागरौन दुर्ग जो राजस्थान हाड़ौती क्षेत्र में स्थित है । 

हम यहाँ पर बात करेंगे जल दुर्गों में सबसे विख्यात और अलग ही पहचान लिए हुए है उस दुर्ग की  वो है गागरौन फोर्ट


 गागरौन फोर्ट का निर्माण और आक्रमण:

राजस्थान के हाड़ौती अंचल में मुकुन्दरा हिल्स के जंगलों में आहू और कालीसिंध नदी के संगम पर स्थित ये किला अपने वक़्त की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जो देखने मे जितना ही मन मोहक और लुभावना लगता है उतना ही ये किला सुदृढ़ और मजबूत है जिसको जितने के बारे में सोचना भी एक बारगी अकल्पनीय स्वप्न जैसा लगता है।

इस किले का निर्माण डोड ( परमार) राजपूतो द्वारा किया गया इन्ही के नाम पर इस किले का आरम्भिक नाम डोडगढ़ या धुलगढ़ पड़ा। इस किले को तीन और से आहू औऱ कालीसिंध नदी ने घेर रखा है तथा एक सुरंग की सहायता से नदी का जल किले के अंदर पहुचाया गया हैं ।

इस किले पर ज्ञात पहला आक्रमण खींची राजवंश के संस्थापक देवणसिंह ने 12वी शताब्दीइस किले पर ज्ञात पहला आक्रमण खींची राजवंश के संस्थापक देवणसिंह ने 12वी शताब्दी किया उस वक़्त डोड शासक बिजलदेव था , इस जीत के बाद धुलगढ़ का नाम बदल कर देवणसिंह ने गागरौन कर दिया था।

 उसके बाद इस दुर्ग पर तत्कालीन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया लेकिन किले की सामरिक परिस्थिति और खींचियो के तत्कालीन राजा जैतसिंह के शौर्य के आगे सुल्तान नही टिक पाया औऱ पराजय का मुह देखना पड़ा ।

पार्ट 2 पढ़ने के लिए यहाँ क्लीक करें 



















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