गागरौन फोर्ट - एक अनभिज्ञ दास्ताँ (part 2 )
Part no. 1 पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
गागरोण का इतिहास :-
इस किले पर ज्ञात पहला आक्रमण खींची राजवंश के संस्थापक देवणसिंह ने 12वी शताब्दी किया उस वक़्त डोड शासक बिजलदेव था , इस जीत के बाद धुलगढ़ का नाम बदल कर देवणसिंह ने गागरौन कर दिया था।
उसके बाद इस दुर्ग पर तत्कालीन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया लेकिन किले की सामरिक परिस्थिति और खींचियो के तत्कालीन राजा जैतसिंह के शौर्य के आगे सुल्तान नही टिक पाया औऱ पराजय का मुह देखना पड़ा । इसी क्रम में जैतसिंह के बाद पीपा राव (बप्पा जी) गागरौन के शासक बने जिनको आज भी दक्षिणी राजस्थान में लोक देवता पीपाजी के नाम से पूजा जाता है, इन्ही के शासन काल मे दिल्ली के तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक ने गागरौन पर आक्रमण किया क्योंकि किसी ने फिरोजशाह को बताया कि गागरौन एक अजेय जल दुर्ग है औऱ यहाँ के निवासी खिराज ( एक प्रकार का कर जो तुगलकों द्वारा वसूला जाता रहा था ) नही देते है। इससे रुष्ठ होकर फिरोजशाह ने गागरौन पर आक्रमण कर दिया , लेकिन पिपाजी कर कुशल नेतृत्व और किले की सुदृढ़ संरचना के कारण फिरोजशाह को निराशा ही हाथ लगी और तुगलकों की शाही सेना को वापस लौटना पड़ा । पिपाजी निसन्तान थे तो उन्होंने अपने भतीजे कल्याणराव को गागरौन का जिम्मा सौप कर सन्यास आश्रम में प्रवेश किया ।
कालांतर में खींचियो के शासक भोजराज बने और उनके बाद शासक बने अचलदास खींची जिन्हें खनिचियो का सबसे प्रतापी शासक माना जाता था । इसी समय दिल्ली का तुगलक वंश अपने पतन की ओर अग्रसर था तो उनके अधीन सामंत खुद को स्वतंत्र शासक घोषित करने में लगे हुए थे , इसी क्रम में मालवा का सूबेदार दिलावर खान गोरी ने
अपने आप को मालवा का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया ,मालवा के सबसे समीप राज्य उस वक़्त गागरौन ही था जो मालवा की आंखों का वो कांटा बना हुआ था जिसे बिना पूर्व प्लान के आंखों से निकलने की गुस्ताखी मतलब अपनी आंख से हाथ धो देने के बराबर नजर आ रही थी । दिलावर खान के बाद उसी क्रम में मालवा के शासक होशंगशाह बने। उन्होंने सन 1423 ई में एक विशाल सेना लेकर गागरौन पर चढ़ाई कर दी , उस वक़्त के तत्कालीन गागरौन के शासक अचलदास खींची से होशंगशाह को कड़ी टक्कर मिली ऐसा माना जाता रहा है कि ये युद्ध गागरौन के इतिहास का सबसे भयानक युद्ध था, इस युद्ध का ह्रदयविदारक विवरण तत्कालीन कवि शिवदास गाडण की रचना " अचलदास खींची री वचनिका " में किया गया है , माना जाता है कि गंगरौन के इतिहास का यह भयंकर संग्राम लगभग एक पखवाड़े तक चला जिसका परिणाम भयानक रहे। अचलदास खींची और उनके सभी प्रमुख योद्धा इस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए उनकी मृत्यु का समाचार सुन कर किले के अंदर की वीरांगनाओं ने जौहर कुंड की आग में खुद को समर्पित कर दिया और उस आवत हुआ जोहर गागरौन के इतिहास का पहला जौहर था जो पूर्णतः एक शाका ( केशरिया औऱ जोहर जब दोनों एक साथ हो जाते है उस घटना को शाका कहते है) हुआ था। इस घटना के बाद होशंगशाह ने अपने पुत्र गजनी खां को शासक बनाया जिसने किले का विस्तार कालीसिंध के मुहाने तक किया और बुर्जो के मरमत का कार्य करवाया।