क्या आप जानते है हिमाचल का एक ऐसा मंदिर यहाँ हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के समय रुके थे
वैसे तो भारत देश ही देवी देवताओं का देश है। यहाँ का हर राज्य अपने अपने तरीके से खास है ऐसे ही भारत का राज्य है हिमाचल प्रदेश जिसे देव भूमि भी कहा जाता है यहाँ बहुत सारे मंदिर है जिनकी अपनी ही खासियत है तो आज हम बात करने जा रहे है शिमला में स्थित जाखू मंदिर की।
'जाखू मंदिर' भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान को समर्पित है। शिमला के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है, जिसकी बड़ी मान्यता है।यह मंदिर 'जाखू पहाड़ी' पर समुद्र तल से 8048 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। जाखू मंदिर' में हनुमान की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है, जिसकी ऊँचाई 108 फीट है। ये प्रतिमा वर्ष 2010 में स्थापित की गई थी। इससे पहले केवल आंध्र प्रदेश में ही 135 फीट की ऊँचाई वाली मूर्ति स्थापित है। शिमला के सबसे लोकप्रिय स्पॉट मॉल मार्ग से 'जाखू मंदिर' के लिए रास्ता बना है। घने देवदार के पेड़ों के बीच 'जाखू मंदिर' हनुमान का ऐतिहासिक मंदिर है।
जाखू मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह प्रसिद्ध मंदिर 'जाखू पहाड़ी' पर स्थित है। यह मंदिर भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी को समर्पित है और हिन्दू आस्था का मुख्य केंद्र है। मंदिर परिसर में बहुत से वानर रहते हैं। पहाड़ी पर राज्य सरकार द्वारा विभिन्न ट्रैकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। जाखू मंदिर की चोटी से शिमला शहर का विहंगम नज़ारा देखने का आनंद ही कुछ और है। यहाँ आने वाले पर्यटक 2100 मीटर से अधिक की ऊंचाई से कई किलोमीटर दूर तक परमपिता की अभिनव चित्रकारी का आनंद उठा सकते हैं।
जाखू मंदिर, जाखू पहाड़ी पर समुद्र तल से 8048 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह बर्फीली चोटियों, घाटियों और शिमला शहर का सुंदर और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। भगवान हनुमान को समर्पित यह धार्मिक केंद्र 'रिज' के निकट स्थित है। यहाँ से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त के लुभावने दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार:
पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु श्री राम तथा रावण के मध्य हुए युद्ध के दौरान मेघनाद के तीर से जब लक्ष्मण ही घायल एवं मूर्छित हो गए थे। उस समय सब उपचार निष्फल हो जाने के कारण वैद्यराज सुषेण ने कहा कि अब एक ही उपाय शेष बचा है। हिमालय की संजीवनी बूटी से लक्ष्मण जी की जान बचायी जा सकती है जो की कम समय में काफी मुश्किल कार्य है । इस संकट की घड़ी में रामभक्त हनुमान ने कहा प्रभु मैं संजीवनी लेकर आता हूँ। हनुमान जी हिमालय की और उड़े, रास्ते में उन्होंने नीचे पहाड़ी पर 'याकू' नामक ऋषि को देखा तो वे नीचे पहाड़ी पर उतरे। जिस समय हनुमान पहाड़ी पर उतरे, उस समय पहाड़ी उनका भार सहन न कर सकी। परिणाम स्वरूप पहाड़ी जमीन में धंस गई। मूल पहाड़ी आधी से ज्यादा धरती में समा गई। इस पहाड़ी का नाम 'जाखू' है। यह 'जाखू' नाम ऋषि याकू के नाम पर पड़ा था।
हनुमान ने पहाड़ी पर उतर कर ऋषि को नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की और ऋषि को वचन दिया कि संजीवनी लेकर आते समय ऋषि के आश्रम पर ज़रूर आएंगे। पर हनुमान जी का रास्ते में 'कालनेमी' नामक राक्षस द्वारा रास्ता रोका गया और बाद में हनुमान जी ने युद्ध करके उसे परास्त किया। इस दौड़धूप तथा समयाभाव के कारण हनुमान ऋषि के आश्रम नहीं जा सके। हनुमान जी याकू ऋषि को नाराज नहीं करना चाहते थे, इस कारण अचानक प्रकट होकर और अपना विग्रह बनाकर अलोप हो गए। ऋषि याकू ने हनुमान की स्मृति में मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर में जहां हनुमानजी ने अपने चरण रखे थे, उन चरणों को संगमरमर पत्थर से बनवाकर रखा गया है। ऋषि ने वरदान दिया कि बंदरों के देवता हनुमान जब तक यह पहाड़ी है, लोगों द्वारा पूजे जाएंगे।
एक अन्य कथा
शिमला के सबसे लोकप्रिय स्पॉट मॉल मार्ग से जाखू मंदिर के लिए रास्ता बना है। घने देवदार के पेड़ों के बीच जाखू मंदिर हनुमान का ऐतिहासिक मंदिर है। एक अन्य किवदंति के अनुसार हनुमान जब संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे, तब उन्होंने जाखू मंदिर पर विश्राम किया था। बूटी के लिए जाते समय बजरंगबली ने शिमला की उक्त पहाड़ी पर विश्राम किया था। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद हनुमान अपने साथियों को यहीं पर छोड़ कर अकेले ही संजीवनी बूटी लाने के लिए निकल पड़े थे। ऐसा माना जाता है कि उनके वानर साथियों ने यह समझकर कि बजरंगबली उनसे नाराज होकर अकेले ही गए हैं, उनका यहीं पहाड़ी पर वापस लौटने का इंतजार करते रहे। इसी के परिणामस्वरूप आज भी यहाँ व्यापक संख्या में वानर पाए जाते हैं।