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अध्यात्म (Spirituality)  क्या है

क्या है अध्यात्म और क्यों ज़रूरी है ये मनुष्य के लिए

अध्यात्म के बिना मनुष्य जीवन कुछ भी:

अध्यात्म धर्म और ईश्वर की श्रद्धामय और निष्ठायुक्त भावना को ही ‘अध्यात्म’ कहते हैं। पाश्चात्य जगत् को भारतीय तत्त्वज्ञान का संदेश देने वाले महान विश्वगुरू स्वामी विवेकानंद का यह दृढ़ विश्वास था कि “अध्यात्मविद्या, भारतीय धर्म एवं दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा।” उनका मत था कि ‘यदि मनुष्य के पास संसार की प्रत्येक वस्तु है, पर अध्यात्म नहीं है तो कुछ भी नहीं है। उनकी दृष्टि में मनुष्य की यह परा-प्रकृत्ति-आत्मा उतनी ही सत्य है, जितना कि किसी पाश्चात्य व्यक्ति की इन्द्रियों के लिए कोई भौतिक पदार्थ।

आनि अधि इति अध्याता:” के अनुसार ‘आत्म का ज्ञान’ ही अध्यात्म है। अधि और आत्म शब्दों से मिलकर बने हुए इस ‘अध्यात्म’ शब्द की व्याख्या कई प्रकार से की गई है। निर्गुण, निराकार और नित्य चेतन आत्मा को परमात्मा से भिन्न-अभिन्न मानते हुए विभिन्न दार्शनिक सिद्धांत प्रचलित हैं। सदियों से किए जा रहे प्रयास अभी भी ‘नेति-नेति’ से परे नहीं है। जीव-आत्मा-परमात्मा का अन्तर्सम्बन्ध ही अध्यात्म की विषय-वस्तु है।

आत्मा-परमात्मा के सम्बन्ध की विवेचना के लिए ”तैत्तिरीय उपनिषद्” में वर्णित है-

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते।

येन जातानि जीवन्ति।

यत् प्रयन्त्यभि संविशन्ति।

तद्वितिज्ञासस्व। तद् बह्मति।

ईश्वर, जीव एवं माया को मान्यता:

भारतीय अध्यात्मवाद में ईश्वर, जीव एवं माया को मान्यता दी गई है। जीव ईश्वर से अलग होकर माया के बन्धन में फंस जाता है तथा ईश्वर को विस्मृत कर जगत् को सत्य एवं नित्य मान लेता है। जब ज्ञान से माया का आवरण हट जाता है तब जीव को “ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या” की उक्ति सत्य प्रतीत होती है।

गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है। 

“परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते “

आत्मा परमात्मा का अंश है यह तो सर्विविदित है।  अध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में सामान रूप से निरंतर होती रहती है।

गीता के द्वितीय अध्याय में भी भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्मा को अजर, अमर तथा अविनाशी बताया है –

न जायते म्रियते बा कदाचित्,

नामं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो,

न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।

भारतवर्ष है आध्यात्मिक में ज्ञान श्रेष्ठ:

परमात्मा का माया के साथ संयोग होने पर वह जीव हो जाता है। स्थूल, सूक्ष्म और कारण- तीनों शरीरों के संबंध से रहित व्यष्टि-चेतन का नाम आत्मा है। पुनर्जन्म, मृत्यु, मोक्ष, कर्मफल आदि रहस्यों का तात्विक-विवेचन कर कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्धारण अध्यात्म के बल पर ही किया जाता है। यही वह विलक्षण शक्ति हैं जिसके आधार पर जगत् में भारतवर्ष की श्रेष्ठता सिद्ध होती रही है। दैवीय आशीर्वाद से आध्यात्मिक ज्ञान की अथाह संपति भारतवर्ष के पास है। वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, भागवत, महाभारत, योगसिद्धि और संतों के भजन-सभी सत्यानुभूति और अन्तर्ज्ञान की दुर्लभ विधि है। ‘अध्यात्म’ इस सृष्टि का सर्वोच्च ज्ञान है, जिसमें गूढ़तम रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। अनेक ज्ञान-अज्ञान, व्यक्त-अव्यक्त, सूक्ष्म-स्थूल, जड़-चेतन, प्रकृति-पुरूष, आत्मा परमात्मा, सृष्ट और ब्रह्म, आदि-अंत, जन्म-मृत्यु, परलोक एवं पुनर्जन्म आदि रहस्यों को सप्रमाण प्रस्तुत करने में अध्यात्म ही सफल हो सका है।

ऋग्वेद के मण्डल 10 सूक्त 72 में संसार के प्रारम्भिक आधार काअसत् अथवा अविद्यमान् रूप में वर्णन किया गया है, जिसके साथ अदिति का,जो असीम है, तादात्म्य बताया गया है, अर्थात् वह भी असत् रूप में था। असीम से विश्व शक्ति उदित होती है। यद्यपि कभी-कभी विश्वशक्ति का स्वयं असीम उत्पत्ति स्थान करके वर्णन किया गया है। इस प्रकार की कल्पनाएँ शीघ्र अभौतिक सत्ता के साथ सम्बद्ध हो गई और इस प्रकार भौतिक विज्ञान ने धर्मके साथ गठबंधन करके अध्यात्म-विद्या को जन्म दिया।



















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