वेदों में अनेक जगह परमात्मा को एक ऐसे 'स्तम्भ' के रूप में देखा गया है जो समस्त सात्विक गुणों, शुभ वृत्तियों का आधार है। वही मृत्यु और अमरता, साधारण और महानता के बीच की कड़ी है। यही कारण है कि हिंदू मंदिरों और हिन्दू स्थापत्य कला में स्तम्भ या खंभे प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त, योग साधना भी अग्नि की लौ पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करने को कहती है, जो स्वयं शिवलिंगाकार है। इसका भी स्पष्ट आधार वेदों में मिलता है। शिवलिंग और कुछ नहीं ऐसा लौकिक स्तंभ ही है जिस पर हम (अग्नि की लौ की तरह) ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी कल्याणकारी भावनाओं को उससे जोड़ सकते हैं। यही कारण है कि शिवलिंग को 'ज्योतिर्लिंग' भी कहा जाता है। ज्योति वह है जो आपके अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैला दे। आत्मज्ञान का वह पथ जो अलौकिक दिव्य प्रतिभा की ओर ले जाता है। (आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् – प्रकाश से पूर्ण, अज्ञान अंधकार तम से हीन), शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है।
पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग।
शिवलिंग मुख्यतः गयारह प्रकार के होते है,
जो की प्रथम स्थान पर रूद्र रूपी ज्योतिर्लिंग है, जो की भारत के सभी शक्ति पीठो में पूजा जाता है, इस शिवलिंग का दूसरा एवम जागृत रूप रासमणि शिवलिंग है जो अपने आकर के अनुसार बहुत वजनिय होता है, यह देखने में चाँदी के रंगों में होता है,इसे पानी मे डालकर बाहर धूप में रख दिये जाने से सोने के रंग में तब्दील हो जाता है, यह शिवलिंग को विश्वकर्मा जी ने अपने हाथों से तरासे थे, यह शिवलिंग अनेकों जड़ी बूटियों एवम खाश तरह के धातु से बनाया गया है, यह कोई पथ्थर का शिवलिंग नहीं है लेकिन यह पत्थर से भी ज्यादा कोमल होता है अगर यह गिर जाए तो टूट भी सकता है। इस शिवलिंग को सोने का रत्न बहुत ही पसंद है, यह शिवलिंग भविष्य की भी सूचना भी देता है, इस शिवलिंग को अंग्रेजों ने 1842 ई0 में उज्जैन के महाकाल मंदिर से लूट कर ईस्ट इंडिया कंपनी को बेच दिया था, इस शिवलिंग की खास बात यह है कि इस शिवलिंग के अंदर भगवान शिव के अन्य शिवलिंग एवम त्रिनेत्र का दर्शन भी होती है, जो इस शिवलिंग का सही से जागृत कर के पूजन करते है, उन्हें साक्षात भगवान शिव के दर्शन होता है यह शिवलिंग जिस भी घर मे या किसी व्यक्ति के पास हो तो उसे धन और यश दोनो का भरपूर आनंद भोगता है, और यहां तक की उस व्यक्ति को यमदूत भी नहीं छू सकते। महाकाल मंदिर में प्रत्येक सावन के सोमवारी को इस बचे तीनों शिवलिंग का विधिविधान से पूजन कर के गर्व गृह में रख दिया जाता है, ऐसा कहा जाता है की भगवान विष्णु ने भोलेनाथ के क्रोध को शांत करने के लिए ही विश्वकर्मा जी से शिवलिंग का निर्माण करवा कर इसका पूजन किये थे, ब्रह्म जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपने श्राप को खत्म करने के लिये इसी शिवलिंग का पूजन किये थे,और अपने श्राप से मुक्त हुए थे, भगवान राम ने रामेश्वरम में इसी शिवलिंग का पूजा अर्चना किये थे, भगवान राम को बनवास जाने से कुछ दिन पहले यह शिवलिंग नील कमल के तरह नीले पड़ चुके थे, मंदिर परिसर में अगर किसी भी प्रकार का कोई खतरा आता है तो यह तीनों शिवलिंग अपने आप अपने रंग को बदलते है। जिससे कि खतरे को भापकर टाल दिया जाता है, इसका प्रमाण 2014 में नेपाल में भूकंप आने के पहले उज्जैन महाकाल मंदिर से अप्रिय घटना घटने की 3 दिन पहले ही खबर आ चुका था।ऐसा माना जाता है कि अगर किसी भी जीव ने अपने हाथों से छू कर इस शिवलिंग का पूजन या दर्शन मात्र से भी सारा पाप ग्रह दोष खत्म हो जाता है।
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात् इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है। हम जानते हैं कि सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते हैं जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा, गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि। अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग), उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है, लिंग का यही अर्थ वैशेषिक शास्त्र में कणाद मुनि ने भी प्रयोग किया। ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है।
वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। अब जरा आईंसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते हैं। इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नहीं एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है। हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था। हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते हैं कि जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि।स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट (bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते हैं। जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके। पुराणो में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है। लंबुकेश्वर मंदिर, श्रीरंगम में शिवलिंग
शास्त्रों में महात्म्य- शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका विधि-विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है। शिवलिंग का सविधि पूजन करने से मनुष्य सन्तान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है। दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है। तंत्र एवम मन्त्र में रुद्ररूपी और रासमणि का प्रयोग खाश तरह से किया जाता है, रुद्ररूपी और रासमणि का एक साथ मंत्रो का प्रयोग करने पर भगवान शिव के आंशिक रूप की सिद्धि प्राप्त होती है।
तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्। नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥