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आचमन

आचमन का अर्थ होता है जल पीना। इससे पहले जल से शरीर के सभी छिद्रों को साफ करना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है।

 संध्यावंदन ,पूजा, आरती, प्रार्थना, संध्योपासना, ध्यान, साधना, भजन कीर्तन यज्ञ-हवन आदि के करने से पहले *पवित्रता व शुद्धि* के लिए आचमन करना आवश्यक होता है-----:

 आचमन का अर्थ :*---

 आचमन का अर्थ होता है जल पीना। इससे पहले जल से शरीर के सभी छिद्रों को साफ करना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। 

आचमन के जल की मात्रा---

  आचमन के लिए जल सिर्फ इतना ही लिया या पिया जाता है जो कि हृदय तक पहुंच जाए। इस जल को कुछ देर रुक रुक कर तीन बार ग्रहण किया जाता है।

आचमन के लिए आचमनी  

आचमनी का अर्थ एक छोटा तांबे का लोटा और तांबे की चम्मच को आचमनी कहते हैं। छोटे से तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा स्थल पर रखा जाता है। यह जल आचमन का जल कहलाता है। 

 आचमन के लाभ ---

1 . पहला लाभ : इससे हृदय की शुद्धि होती है। 

2 . दूसरा लाभ : इससे मन निर्मल और शुद्ध होता है।

3. तीसरा लाभ : इससे पूजा का फल दोगुना मिलता है।h

4. चौथा लाभ : जो विधिपूर्वक आचमन करता है, वह पवित्र हो जाता है। 

5. पांचवां लाभ : आचमन करने वाला सत्कर्मों का अधिकारी होता है।

6. छठवां लाभ : पहले आचमन से ऋग्वेद और द्वितीय से यजुर्वेद और तृतीय से सामवेद की तृप्ति होती है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक को अभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। दोनों आंखों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।

 आचमन विधि :------

 वैसे तो आचमन के कई विधान और मंत्र है लेकिन यहां छोटी सी ही विधि प्रस्तुत है। आचमन सदैव उत्तर, ईशान या पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही किया जाता है, अन्य दिशाओं की ओर मुंह करके कदापि न करें।  

हथेलियों को मोड़कर गाय के कान जैसा बना लें कनिष्ठा व अंगुष्ठ को अलग रखें। तत्पश्चात जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें-

ॐ केशवाय नम: 

ॐ नाराणाय नम:

ॐ माधवाय नम:

ॐ ह्रषीकेशाय नम:, बोलकर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)। उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है।

 आचमन मुद्रा :-------

 शास्त्रों में कहा गया है कि आचमन के लिए बाएं हाथ की गोकर्ण मुद्रा ही होनी चाहिए तभी यह लाभदायी रहेगा। गोकर्ण मुद्रा बनाने के लिए तर्जनी को मोड़कर अंगूठे से दबा दें। उसके बाद मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को परस्पर इस प्रकार मोड़ें कि हाथ की आकृति गाय के कान जैसी हो जाए।

 *भविष्य पुराण* के अनुसार जब पूजा की जाए तो आचमन पूरे विधान से करना चाहिए। आचमन की विधि यह है कि हाथ-पांव धोकर पवित्र स्थान में आसन के ऊपर पूर्व से उत्तर की ओर मुख करके बैठें। फिर जल का आचमन करें।

 आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ बताए गए हैं--- 

 1. देवतीर्थ, 2. पितृतीर्थ, 3. ब्रह्मातीर्थ, 4. प्रजापत्यतीर्थ और 5. सौम्यतीर्थ।

 *कहा* जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा के मूल में प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है....। 

 *आचमन* हमेशा *ब्रह्मातीर्थ* से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए......।

 *अर्थात* जो पवित्रता की कामना रखता है उसे आचमन अवश्य करना चाहिए। 'आचमन' कर्मकांड की सबसे जरूरी विधि मानी जाती है। वास्तव में आचमन केवल कोई प्रक्रिया नहीं है। यह हमारी बाहरी और भीतरी शुद्धता का प्रतीक है। 

 *प्रत्येक* कार्य में आचमन का विधान है। आचमन से हम न केवल अपनी शुद्धि करते हैं अपितु ब्रह्मा से लेकर तृण तक को तृप्त कर देते हैं। जब हम हाथ में जल लेकर उसका आचमन करते हैं तो वह हमारे मुंह से गले की ओर जाता है, यह पानी इतना थोड़ा होता है कि सीधे आंतों तक नहीं पहुंचता। हमारे *हृदय* के पास स्थित *ज्ञान चक्र* तक ही पहुंच पाता है और फिर इसकी गति धीमी पड़ जाती है। यह इस बात का प्रतीक है कि हम वचन और विचार दोनों से शुद्ध हो गए हैं, तथा हमारी मन:स्थिति पूजा के लायक हो गई है.....। 

आचमन में तांबे के विशेष पात्र से हथेली में जल लेकर ग्रहण किया जाता है। उसके बाद खुद पर जल छिड़क कर शुद्ध किया जाता है।

 *शास्त्रों में कहा गया है कि* - नींद से जागने के बाद, भूख लगने पर, भोजन करने के बाद, छींक आने पर, असत्य भाषण होने पर, पानी पीने के बाद, और अध्ययन करने के बाद आचमन जरूर करें...।

आचमन की साधारण विधि-

 कोई भी पूजा-उपासना- आरती- संध्या-पाठ इत्यादि करने से पहले तीन बार एक-एक चम्मच जल लेकर श्री नारायण,केशव,माधव आदि कोई भी भगवान का नाम लेते हुए उस जल को अपने मुख्य में डाल कर अपने आप को पवित्र करें.. इतना करना भी काफी है, यह आचमन की साधारण और उत्तम विधि है........।।

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